भगवद गीता का अध्याय 15 - "पुरुषोत्तम योग" (Purusottama Yoga) हमें आत्मा, परमात्मा, और जीवात्मा के बीच के रिश्तों के बारे में बताता है। इस अध्याय में, भगवान श्रीकृष्ण हमें आत्मा की महत्वपूर्ण बातें बताते हैं, जो हमें अपने जीवन में ध्यान में रखनी चाहिए।
पुरुषोत्तम (अद्वितीय श्रेष्ठ)
इस अध्याय में भगवान का वर्णन "पुरुषोत्तम" के रूप में किया गया है, जो सबसे श्रेष्ठ और अद्वितीय है। वह सबका परम आदिकरण है और सब कुछ उसके आदि से ही उत्पन्न होता है।
इस अध्याय में आत्मा और परमात्मा के संबंध का वर्णन किया गया है, जिससे हम अपने आत्मा को समझ सकते हैं और अपने आत्मा को परमात्मा के साथ जोड़ सकते हैं।
सर्वव्यापक (ओम का प्रतीक)
इस अध्याय में भगवान का वर्णन "सर्वव्यापक" के रूप में किया गया है, जिससे हम यह समझ सकते हैं कि वह सभी जीवों में व्याप्त हैं और सब कुछ उनमें ही अवस्थित है।
आत्मा को परमात्मा से मिलाने के लिए भगवान के नाम का जाप करने और ध्यान करने का मार्ग बताया जाता है।
मोक्ष का मार्ग (मोक्ष की प्राप्ति)
इस अध्याय में मोक्ष के मार्ग का वर्णन किया गया है, जिसमें ज्ञान, ध्यान, और प्रार्थना का महत्व हाथ में लिया गया है।
आत्मा की प्राप्ति और परमात्मा की प्राप्ति के लिए ज्ञान, ध्यान, और प्रार्थना का महत्व बताया गया है, जो हमें मोक्ष की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन करता है।
इस अध्याय में आत्मा की महत्वपूर्ण बातें, परमात्मा का वर्णन, और मोक्ष के मार्ग का विस्तार से वर्णन किया गया है। यह अध्याय हमें आत्मा के महत्व को समझने और परमात्मा के साथ जुड़ने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है।