परिचय:
खाटू श्याम जी की असली कहानी महाभारत काल से शुरू होती है। वे भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बरबरीक थे। उनकी वीरता और भक्ति के कारण ही वे कलियुग में "श्याम" नाम से पूजे जाते हैं।
जन्म और पृष्ठभूमि:
बरबरीक का जन्म नाग कन्या मोर्वी और घटोत्कच से हुआ था। बचपन से ही वे महान योद्धा थे। उन्हें भगवान शिव से तीन बाण और अग्निदेव से धनुष प्राप्त हुआ था। यह तीन बाण इतने शक्तिशाली थे कि:
पहला किसी भी लक्ष्य को चिह्नित कर सकता था।
दूसरा उसे नष्ट कर देता था।
तीसरा सभी कार्य करके वापस लौट आता था।
बरबरीक का संकल्प:
महाभारत युद्ध के पहले उन्होंने संकल्प लिया कि वे सदैव कमजोर पक्ष का साथ देंगे। लेकिन इससे युद्ध का संतुलन बिगड़ जाता, क्योंकि उनका पक्ष हर बार बदलता रहता।
कृष्ण की परीक्षा और बलिदान:
श्रीकृष्ण ब्राह्मण के वेश में आए और उनकी शक्ति की परीक्षा ली। उन्होंने एक पत्ता अपने पैर के नीचे छिपाया, लेकिन बरबरीक का बाण उसे भी भेदने लगा।
कृष्ण ने तब उनसे दान में सिर मांगा, ताकि युद्ध संतुलन के साथ हो सके। बरबरीक ने खुशी से सिर दान दिया और कहा कि वह युद्ध देखना चाहता है।
कृष्ण ने उनका सिर कुरुक्षेत्र में एक ऊँची जगह पर रख दिया, जहाँ से उन्होंने पूरा युद्ध देखा।
वरदान और श्रद्धा:
कृष्ण ने उन्हें वरदान दिया:
"कलियुग में तुम मेरे नाम श्याम से पूजे जाओगे और सच्चे भक्तों की सभी इच्छाएँ पूरी होंगी।"
आज वे खाटू श्याम जी के रूप में राजस्थान के खाटू गाँव में पूजे जाते हैं।
धार्मिक महत्त्व:
खाटू श्याम जी बलिदान, भक्ति और सत्य के प्रतीक माने जाते हैं। उनकी भक्ति से कष्ट दूर होते हैं, और सच्ची श्रद्धा से मांगी गई हर मनोकामना पूर्ण होती है।