मीरा बाई 16वीं शताब्दी की महान संत, कवयित्री और भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थीं। उनका जीवन चमत्कारों से भरा हुआ था, जो सच्चे भक्ति की शक्ति को दर्शाता है। परिवार और समाज के विरोध के बावजूद, उनकी अटूट आस्था ने उन्हें हर संकट से बचाया।
शत्रुओं ने मीरा बाई को विष का प्याला दिया। उन्होंने इसे श्रीकृष्ण के नाम से पी लिया। चमत्कारिक रूप से वह विष अमृत में बदल गया और उन्हें कोई हानि नहीं हुई।
एक बार उनके विरोधियों ने फूलों की टोकरी में सांप भेजा। मीरा बाई ने जब टोकरी खोली तो उसमें विषधर सर्प की जगह सुंदर फूलों की माला थी।
भजन गाते समय मीरा बाई के प्रेम से भावविभोर होकर श्रीकृष्ण की प्रतिमा जीवित हो उठी और उन्होंने मीरा के साथ नृत्य किया।
परिवार ने कई बार उन्हें रोकने और नुकसान पहुँचाने की कोशिश की, लेकिन हर बार श्रीकृष्ण ने उनकी रक्षा की। अंततः द्वारका में वे श्रीकृष्ण की मूर्ति में लीन हो गईं और परमात्मा से एकाकार हो गईं।
सच्ची भक्ति भय और मृत्यु पर भी विजय प्राप्त कर सकती है।
ईश्वर के प्रति समर्पण संकट में भी रक्षा करता है।
विश्वास नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदल सकता है।
भक्ति सामाजिक बंधनों और परंपराओं से परे है।
मीरा बाई की चमत्कारी कथाएँ केवल इतिहास नहीं हैं बल्कि प्रेरणा का स्रोत हैं। वे सिखाती हैं कि ईश्वर के प्रति शुद्ध प्रेम जीवन को शांति और दिव्यता से भर देता है।