नवरात्रि का पहला दिन माँ शैलपुत्री की पूजा को समर्पित है। इन्हें पर्वतराज हिमालय की पुत्री कहा जाता है। माँ शैलपुत्री को प्रकृति का प्रतीक, पवित्रता और शक्ति की देवी माना जाता है।
‘शैलपुत्री’ शब्द का अर्थ है – शैल (पर्वत) और पुत्री (बेटी)। माँ शैलपुत्री, हिमालय राज की पुत्री हैं। पिछले जन्म में वे सती थीं, जो भगवान शिव की पत्नी थीं। पिता दक्ष के यज्ञ में अपने पति का अपमान सह न पाने के कारण उन्होंने देह त्याग दी। पुनर्जन्म में वे शैलपुत्री बनीं।
उनके दाएँ हाथ में त्रिशूल, बाएँ हाथ में कमल है और उनका वाहन नंदी बैल है।
माँ शैलपुत्री साहस और स्थिरता की प्रतीक हैं।
उनकी पूजा करने से सभी बाधाएँ दूर होती हैं और मन शुद्ध होता है।
इनका संबंध चंद्रमा से है, जो मन और भावनाओं को नियंत्रित करता है।
पहले दिन भक्त घटस्थापना करते हैं।
उन्हें सफेद या लाल फूल, धूप, और घी का दीपक अर्पित किया जाता है।
इस दिन व्रत रखना अत्यंत शुभ माना जाता है।
“ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥”