नवरात्रि के छठे दिन की पूजा माँ कात्यायनी को समर्पित है। वे देवी दुर्गा का उग्र रूप मानी जाती हैं। ऋषि कात्यायन के घर अवतार लेने के कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ा। वे साहस, विजय और धर्म की रक्षक हैं।
असुर महिषासुर को वरदान प्राप्त था कि कोई पुरुष उसे नहीं मार सकता। उसके अत्याचार से त्रस्त देवताओं की ऊर्जा से एक तेजस्वी देवी प्रकट हुईं और ऋषि कात्यायन के घर जन्म लिया। यही देवी कात्यायनी कहलायीं।
वे सिंह पर सवार होकर महिषासुर का वध करती हैं। यह सत्य की असत्य पर विजय का प्रतीक है।
माँ कात्यायनी के चार हाथ हैं – एक में तलवार, एक में कमल और अन्य से वे भक्तों को आशीर्वाद देती हैं।
माँ कात्यायनी अधर्म और पाप का नाश करने वाली हैं।
उनकी पूजा से साहस, बल और विजय प्राप्त होती है।
इनका संबंध गुरु ग्रह (बृहस्पति) से है, जो ज्ञान और विवेक प्रदान करता है।
अविवाहित कन्याएँ अच्छे पति की प्राप्ति के लिए इनकी पूजा करती हैं।
इस दिन माँ को शहद, लाल फूल और धूप अर्पित करना शुभ माना जाता है।
व्रत रखने और दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से विशेष फल मिलता है।
माँ के मंत्र का जप करने से मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ता है।
“ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥”