परिचय:
ज्वालामुखी शक्तिपीठ हिमाचल प्रदेश में स्थित एक प्रसिद्ध मंदिर है, जो अपने अखंडित ज्वालाओं के लिए जाना जाता है। माना जाता है कि माता सती की जिभा यहीं गिरी थी। यह मंदिर माता ज्वालामुखी को समर्पित है, जो शक्ति का अग्नि रूप हैं और दिव्य ऊर्जा और अखंड शक्ति का प्रतीक हैं। भक्त यहाँ सुरक्षा, ऊर्जा और समृद्धि के लिए आते हैं।
इतिहास और पौराणिक कथा:
हिंदू पुराणों के अनुसार, सती माता के आत्मदाह के बाद भगवान शिव ने उनका शव उठाकर तांडव किया। इसे शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उनका शरीर काटा। सती की जिभा ज्वालामुखी में गिरी और यहाँ देवी अग्नि के रूप में प्रकट हुई। यह मंदिर सदियों से शक्ति पूजा का प्रमुख केंद्र रहा है।
मंदिर वास्तुकला:
ज्वालामुखी मंदिर की वास्तुकला सरल लेकिन पवित्र है। यहाँ कोई मूर्ति नहीं है; केवल पत्थर की दरारों से लगातार निकलती ज्वालाएँ हैं। प्राकृतिक गैस से जलती ये ज्वालाएँ देवी की शक्ति और दिव्य ऊर्जा का प्रतीक हैं। मंदिर परिसर में छोटे मंदिर और पवित्र जलाशय भी हैं।
महत्व:
ज्वालामुखी शक्ति और अग्नि पूजा का शक्तिशाली केंद्र है।
भक्त यहाँ साहस, सुरक्षा, ऊर्जा और इच्छाओं की पूर्ति के लिए आते हैं।
नवरात्रि और दिवाली जैसे त्योहार यहाँ बड़े श्रद्धा भाव से मनाए जाते हैं।
पूजा और अनुष्ठान:
अर्पण में लाल फूल, नारियल, मिठाई और घी के दीपक शामिल हैं।
पुजारी प्रतिदिन आरती और विशेष पूजा करते हैं।
भक्त ज्वालाओं के चारों ओर परिक्रमा करते हैं और शक्ति मंत्रों का जाप करते हैं।
यात्रा सुझाव:
यात्रा का सर्वोत्तम समय: मार्च से जून और सितंबर से नवंबर।
नजदीकी रेलवे स्टेशन: पठानकोट रेलवे स्टेशन।
आसपास के दर्शनीय स्थल: कालेश्वर महादेव मंदिर, कांगड़ा किला, धर्मशाला।