बापा सीताराम (जिन्हें बजरंगदास बापा के नाम से भी जाना जाता है) गुजरात के प्रतिष्ठित संत हैं, जिनकी महानता और भक्ति आज भी हजारों भक्तों को प्रेरित करती है। उनका अश्रम बगदाणा धाम श्रद्धालुओं का केंद्र है।
बापा सीताराम का जन्म वर्ष 1906 (सटीक दिनांक अनिश्चित) को आधे वड़ा (Adhe Wada, Adhewada) गांव, भावनगर जिले में हुआ था।
पिता का नाम हीरदास, माता का नाम शिवर कुवरबाई।
बचपन में उन्होंने केवल दूसरी कक्षा तक पढ़ाई की।
उनका संबंध रमणंदी साधु परंपरा से माना जाता है।
1915 में उन्होंने अपने गुरु सीतारामदास बापु के साथ नासिक के कुंभ मेले में हिस्सा लिया।
उन्होंने मंदाकिनी नदी / चित्रकूट क्षेत्र में बहुत समय साधना में बिताया।
28 वर्ष की आयु में उन्होंने योग सिद्धि प्राप्त की।
उनके गुरु ने उन्हें बजरंगदास बापा नाम दिया, और उन्हें स्वतंत्र आध्यात्मिक मिशन पर भेजा।
उन्होंने भक्तों को सलाह दी कि उन्हें बापा सीताराम कहें, ताकि नाम में सीता राम भी स्मरण हो।
पैंतीस वर्ष की उम्र के आसपास, उन्होंने हिमालय यात्रा की और मुंबई, सूरत, पलिताना, धोलेरा, वगैरह अनेक स्थानों पर समय बिताया।
अंततः वे 41 वर्ष की आयु में बगदाणा आए और वहीं स्थिर हुए, जिसे उन्होंने अपना धाम बनाया।
1951 में वहां एक आश्रम बनाया गया, जो समय के साथ विस्तार पाता गया।
कई चमत्कार उनके भक्तों द्वारा वर्णित हैं — संकटों में सहायता, रोग-उपचार, और असाधारण कार्य।
एक प्रसिद्ध घटना: मुंबई में पानी की भारी कमी थी; उन्होंने खुदाई की और मीठा पानी उत्पन्न किया।
बगदाणा आश्रम में भोजन सेवा (अन्नदान) और धर्मशाला का प्रबंध है, जिससे श्रद्धालुओं को सहायता मिलती है।
उनकी विनम्रता उन्हें सम्मान दिलाती है — वे कभी चमत्कारों का श्रेय नहीं लेते थे और सदैव आध्यात्मिक नाम स्मरण करते रहते थे।
बापा सीताराम ने 9 जनवरी 1977, सुबह 5 बजे बगदाणा आश्रम के माधुली में अपना शरीर त्यागा।
गुजराती कैलेंडर में यह दिन पोस वद चौथ है, जिसे उनके पुण्यतिथि के रूप में मनाया जाता है।
उनके समाधि स्थल, उनके पुराने माधुली, चरणपादुका आदि आज भी श्रद्धालुओं द्वारा देखे जाते हैं।
मंदिर परिसर में राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, गणेश, अन्नपूर्णा आदि के मंदिर भी स्थित हैं।
हर दिन तीन आरती होती है — मंगला, राजभोग और संध्या।
नाम स्मरण: सीताराम नाम से भगवान की स्मृति और भक्ति बनी रहे।
सेवा और दया: उन्होंने सेवा को जीवन का अंग बनाया — भूखे को भोजन देना, यात्रियों का ख्याल रखना।
सादगी एवं आत्म-समर्पण: उन्होंने संसार से भागकर नहीं, बल्कि सरल जीवन जीकर, भक्ति के मार्ग को चुना।
एकता और श्रद्धा: उनका जीवन जाति-धर्म से ऊपर था — भक्ति, नाम, आत्मिक परिवर्तन उनकी मूल भाषा थी।
स्थान: बगदाणा, महुवा तालुका, भावनगर जिला, गुजरात।
दर्शन समय: सुबह से रात, विशेष दिन जैसे चतुर्दशी और पूर्णिमा को 24 घंटे खुला।
आरती कार्यक्रम:
• मंगला आरती — लगभग 5:00 बजे सुबह
• राजभोग आरती — दोपहर 11:45 बजे
• संध्या आरती — शाम के समय
मेले एवं उत्सव: उनकी पुण्यतिथि (पोस वद चौथ), भाद्रपद अमावस्या, गुरु पूर्णिमा पर विशाल आयोजन।
सेवाएं: धर्मशाला, भोजन सेवा, ध्यान स्थल आदि।