नीम करौली बाबा (Neeb Karori Baba / महाराज-जी) हिंदू संत थे, जिन्हें श्री हनुमानजी का बहुत बड़ा भक्त माना जाता है। वे भक्ति, सेवा और तुच्छता की प्रतिमूर्ति थे। उनका जीवन आज भी कई लोगों के लिए मार्गदर्शक है।
बाबा का जन्म लगभग 1900 के आसपास उत्तर-प्रदेश के फीरोजाबाद ज़िले के अकबरपुर गाँव में हुआ था। उनका मूल नाम लक्ष्मण नारायण शर्मा था।
पिता का नाम दुर्गा प्रसाद शर्मा, माता का नाम कौशल्या देवी। माता का देहांत उनके बचपन में हो गया।
जब वे लगभग 11 वर्ष के थे, तब उनका विवाह हुआ था, परंतु बाद में उन्होंने घर छोड़कर आध्यात्मिक साधना की राह चुनी।
जीवन भर वे भक्ति और हनुमान भक्ती में लीन रहे। उन्होंने भारत के उत्तर भागों और पहाड़ी क्षेत्रों में घुमाव भरी साधना की।
विभिन्न स्थानों पर उन्हें अलग-अलग नामों से जाना गया: हँडी वाला बाबा, टिकोनिया वाला बाबा, तलाईया बाबा, चमत्कारी बाबा आदि।
“नीम करौली बाबा” नाम एक घटना से जुड़ा है जब एक ट्रेन घटना के बाद लोगों ने उन्हें उस इलाके से नाम दिया।
उनका मुख्य संदेश था भक्ति योग — ईश्वर की स्मृति, प्रेम और सेवा।
सेवा को उन्होंने परम भक्ति माना: भूखे को खाना देना, ज़रूरतमंदों की मदद करना, बिना भेदभाव व्यवहार करना।
सरलता, नम्रता, मौन में उपस्थित रहने की शक्ति— ये उनकी पहचान थीं। लोगों को शब्दों से कम, होने से ज़्यादा प्रेरणा मिली।
केंची धाम (Kainchi Dham, Uttarakhand) और वृंदावन उनके प्रमुख आश्रम हैं।
अन्य स्थान: ऋषिकेश, शिमला, दिल्ली, हरिद्वार, Neem Karoli गाँव (फ़र्रुख़ाबाद), आदि।
केंची धाम आश्रम की स्थापना 1960 के दशक में हुई; वहाँ हनुमान जी का मंदिर and निवास स्थान है।
भक्तों के अनुसार बाबा ने कई चमत्कार किए — अचानक उपस्थित होना, लोगों की मनोकामनाएँ पूरी करना, खाने-पीने की ज़रूरतों की आपूर्ति करना बिना संसाधनों के, आदि।
उनकी सादगी: हमेशा कंबल या धोती पर आधारित सरल वस्त्र पहनना, ज़मीन पर या साधारण बेंच पर बैठना, मौन रहना, मौकों पर हंसी-हंसी में बात करना।
नीम करौली बाबा का देहत्याग 11 सितंबर 1973 को हुआ, वृंदावन में।
उनके अंतिम समय में कहा जाता है कि वे “जय जगदीश हरे” मंंत्र बोलते रहे।
आज उनके अनेक आश्रम व मंदिर हैं; अनेक संत, साधक उनके जीवन से प्रेरणा लेते हैं, पश्चिमी लेखकों ने उनके अनुभवों को विश्व भर में प्रचारित किया है।
उनके उपदेश आज भी प्रासंगिक हैं: प्रेम, सेवा, स्मृति, सरलता — ये ऐसे सिद्धांत हैं जो व्यक्ति को भीतर से बदल सकते हैं।
केंची धाम और वृंदावन में जो भ्रमण स्थल हैं, वहां आने-वाले श्रद्धालु शांति, आत्मा की सन्तुष्टि और आध्यात्मिक अनुभव लेकर लौटते हैं।
उनका जीवन बताता है कि आध्यात्मिकता और भक्ति ज़रूरी नहीं कि बड़े मंत्राो, विचारों या औपचारिक शिक्षाओं में हो — बल्कि ह्रदय की सादगी और प्रेम से भी संभव हो सकती है।