संत नामदेव एक महान भक्त, कवि और भगवान विठ्ठल के अनुयायी थे, जिनका जन्म 1270 ई. में महाराष्ट्र के एक गाँव में हुआ था। बचपन से ही नामदेव भगवान विठ्ठल (भगवान विष्णु के अवतार) के प्रति गहरी भक्ति रखते थे। उनकी भक्ति भजन और कीर्तन के माध्यम से प्रकट होती थी। नामदेव ने औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी, फिर भी उन्होंने अनगिनत भजनों की रचना की, जो आज भी गाए जाते हैं।
एक प्रसिद्ध घटना बताती है कि एक बार नामदेव की माता ने उन्हें भगवान विठ्ठल को प्रसाद चढ़ाने के लिए पंढरपुर मंदिर भेजा। नामदेव, जो उस समय छोटे बच्चे थे, यह मानते थे कि भगवान स्वयं प्रसाद ग्रहण करेंगे। जब भगवान ने प्रत्यक्ष रूप से भोजन नहीं किया, तो नामदेव बहुत दुखी हो गए। उनकी मासूम प्रार्थनाओं और आँसुओं से भगवान विठ्ठल द्रवित हुए और प्रकट होकर भोजन ग्रहण किया, और नामदेव को आशीर्वाद दिया।
जैसे-जैसे नामदेव बड़े हुए, उनकी भक्ति और भी गहरी होती गई। उन्होंने अपने भजनों के माध्यम से भगवान विठ्ठल के प्रेम को दूर-दूर तक फैलाया। उनकी सरल और भावपूर्ण रचनाओं ने साधारण जनमानस से लेकर राजाओं तक को प्रभावित किया। एक प्रसिद्ध घटना के अनुसार, जब नामदेव भगवान विठ्ठल के लिए मंदिर में भजन गा रहे थे, तो मंदिर के पुजारियों ने उन्हें यह कहते हुए बाहर निकाल दिया कि वह एक नीची जाति के हैं। नामदेव ने बिना हतोत्साहित हुए मंदिर के पीछे जाकर भजन गाना शुरू किया। आश्चर्यजनक रूप से, मंदिर भगवान विठ्ठल की मूर्ति के साथ नामदेव की ओर घूम गया, जिससे यह साबित हुआ कि सच्ची भक्ति जाति या सामाजिक स्थिति से परे होती है।
नामदेव की शिक्षाएं इस बात पर जोर देती हैं कि ईश्वर की भक्ति किसी भी सामाजिक या धार्मिक बंधनों से बड़ी है। उन्होंने यह भी माना कि सच्चे भक्त के हृदय में ही भगवान का वास होता है, और भक्ति के माध्यम से ही उन्हें पाया जा सकता है। उनके भजन भक्ति आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बने और उनके कुछ भजन सिखों के पवित्र ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल हैं।
कथा की सीख:
नामदेव की कथा हमें यह सिखाती है कि भगवान सच्चे और शुद्ध भक्ति को स्वीकार करते हैं, चाहे व्यक्ति का सामाजिक या धार्मिक स्तर कुछ भी हो। उनकी शिक्षाएं और भजन आज भी भक्तों को प्रेरित करते हैं।