रामकृष्ण परमहंस 19वीं सदी के एक महान भारतीय संत और आध्यात्मिक गुरु थे। उनका जन्म 1836 में बंगाल के कामारपुकुर गांव में गदाधर चट्टोपाध्याय के रूप में हुआ था। वह देवी काली के महान भक्त थे, लेकिन उनकी भक्ति किसी एक मार्ग या देवता तक सीमित नहीं थी। उन्होंने विभिन्न धर्मों और आध्यात्मिक मार्गों का अनुसरण किया, यह दिखाने के लिए कि सभी मार्ग एक ही सत्य की ओर ले जाते हैं।
रामकृष्ण बचपन से ही आध्यात्मिक प्रवृत्तियों के धनी थे। वह दक्षिणेश्वर काली मंदिर में पुजारी बने और वहां उन्होंने देवी काली की उपासना पूरी भक्ति के साथ की। उनका देवी काली के प्रति संबंध बहुत गहरा था; वे अक्सर ध्यान में डूब जाते थे और दिव्य दर्शन का अनुभव करते थे। उन्होंने काली को अपनी मां माना और उनसे एक घनिष्ठ संबंध स्थापित किया।
रामकृष्ण सभी धर्मों की एकता में विश्वास करते थे। उन्होंने वैष्णव, तंत्र, यहां तक कि इस्लाम और ईसाई धर्म का भी अभ्यास किया, और अंत में इस सत्य तक पहुंचे कि सभी धर्म एक ही परम सत्य की ओर ले जाते हैं। उनके अनुभव यह सिद्ध करते हैं कि ईश्वर की प्राप्ति किसी भी मार्ग से हो सकती है।
उनकी सादगी और गहन आध्यात्मिकता ने कई शिष्यों को आकर्षित किया, जिनमें सबसे प्रमुख स्वामी विवेकानंद थे, जिन्होंने बाद में रामकृष्ण के संदेशों को पूरी दुनिया में फैलाया। रामकृष्ण का संदेश था कि प्रेम और भक्ति के माध्यम से किसी भी रूप या नाम में भगवान की आराधना की जा सकती है। यही संदेश रामकृष्ण मिशन की नींव बना, जो आज भी उनकी शिक्षाओं का प्रचार और मानवता की सेवा करता है।
रामकृष्ण के जीवन की एक प्रमुख घटना उनकी निर्विकल्प समाधि का अनुभव था, जो वेदांत में सर्वोच्च चेतना की अवस्था मानी जाती है। इस अनुभव ने उनके शिष्यों पर गहरा प्रभाव छोड़ा और यह सिद्ध किया कि जीवन का अंतिम लक्ष्य ईश्वर की प्राप्ति है।
कथा की सीख:
रामकृष्ण का जीवन हमें सिखाता है कि ईश्वर की प्राप्ति किसी भी भक्ति मार्ग से हो सकती है, और सच्ची आध्यात्मिकता धर्मों की सीमाओं से परे होती है।