जन्म: 1478 ईस्वी में दिल्ली के पास सिही गांव में।
प्रारंभिक जीवन:
जन्म से ही अंधे थे या बचपन में अंधापन हो गया (कथाएं अलग हैं)।
बचपन से ही भगवान कृष्ण के प्रति अत्यधिक भक्ति।
अंधापन के कारण वे शास्त्रों और ज्ञान को मौखिक रूप से सीखते थे।
भक्ति यात्रा:
वल्लभाचार्य के अनुयायी बने, जिन्होंने पुष्टिमार्ग की स्थापना की।
उत्तर भारत में भ्रमण कर कृष्ण भक्ति का प्रचार किया।
मृत्यु: जीवन का अधिकांश समय वृंदावन में बिताया, जहां भक्ति में लीन रहते हुए निधन हुआ।
भक्ति सर्वोच्च है
शुद्ध प्रेम और भगवान कृष्ण के प्रति समर्पण पर जोर।
उन्होंने सिखाया कि भक्ति अनिवार्य है, न कि केवल कर्मकांड या सामाजिक स्थिति।
कृष्ण के बाल्यकाल पर ध्यान
अधिकांश कविताएं कृष्ण के बाल्यकाल और उनके लीलाओं का वर्णन करती हैं।
भक्ति में समानता
कोई भी, अमीर या गरीब, अंधा या सक्षम, प्रेम और भक्ति से भगवान के करीब पहुंच सकता है।
भावनात्मक भक्ति (रस भक्ति)
विभिन्न प्रकार के भावनात्मक भक्ति रूप:
शृंगार (कृष्ण के प्रति प्रेम)
वात्सल्य (कृष्ण के प्रति मातृ/पितृ प्रेम)
साख्य (मित्रता के रूप में भक्ति)
सुरसागर – कृष्ण के जीवन और लीलाओं पर आधारित प्रसिद्ध काव्य संग्रह।
साहित्य भजनावली – भक्ति गीत और कविताओं का संग्रह।
अन्य भजनों और स्तोत्रों – आज भी पुष्टिमार्ग और मंदिरों में गाए जाते हैं।
उनकी कविताओं में राधा-कृष्ण प्रेम का विशेष स्थान है।
जन्माष्टमी और अन्य कृष्ण उत्सवों में उनकी रचनाएँ आज भी गाई जाती हैं।
अंधापन के बावजूद वे हिंदी साहित्य के महान कवि-संत माने जाते हैं।