परिचय:
दरियालाल दादा, जिन्हें झूलेलाल या ज़िंदा पीर के नाम से भी जाना जाता है, गुजरात और सिंध क्षेत्र के समुद्र तटीय समुदायों के पूजनीय देवता हैं। वे नाविकों, मछुआरों और व्यापारियों के रक्षक माने जाते हैं, जो समुद्र पार यात्रा करते हैं।
कथा:
कहानी के अनुसार, जब समुद्र अत्यधिक उग्र था और तटीय लोगों को नुकसान पहुंचा रहा था, तब भगवान ने दरियालाल दादा को पृथ्वी पर भेजा ताकि वे समुद्र को शांत करें और भक्तों की रक्षा करें। “दरिया” का अर्थ है समुद्र और “लाल” का अर्थ है प्रिय – अर्थात् समुद्र का प्रिय पुत्र।
चमत्कार:
एक बार जब समुद्र में भयंकर तूफान आया, तो दरियालाल दादा ने हाथ उठाया और समुद्र शांत हो गया। वे जल पर चलकर डूबते जहाज को बचाने भी गए थे।
भक्ति और पूजन:
गुजरात और सिंध के भक्त विशेष रूप से “जय झूलेलाल” के नारे के साथ दरियालाल दादा की पूजा करते हैं। उनके मंदिर कच्छ, मांडवी और जामनगर जैसे तटीय नगरों में पाए जाते हैं।
उत्सव:
दरियालाल जयंती चैत्र माह के दूसरे दिन मनाई जाती है। इस दिन भक्त दीप जलाते हैं, समुद्र किनारे पूजा करते हैं और विशेष भोजन बनाते हैं।
आध्यात्मिक महत्व:
दरियालाल दादा साहस, विश्वास और मानवता का प्रतीक हैं। वे हमें सिखाते हैं कि प्रकृति का सम्मान करें और जीवन में कृतज्ञता रखें।
निष्कर्ष:
दरियालाल दादा न केवल समुद्र के रक्षक हैं, बल्कि आस्था और एकता के प्रतीक भी हैं। उनके आशीर्वाद से भक्त जीवन के सागर में सुरक्षित और सुखी रहते हैं।