रविदास, जिन्हें संत रविदास के नाम से भी जाना जाता है, 15वीं सदी के भक्त संत और रहस्यवादी कवि थे। वे उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन के प्रमुख संतों में से एक थे। रविदास का जन्म वाराणसी में एक निम्न जाति के परिवार में हुआ था, लेकिन उनके जीवन और शिक्षाओं ने समाज की कठोर जाति व्यवस्था को चुनौती दी। भगवान के प्रति उनकी गहरी भक्ति और समानता के सिद्धांत ने उन्हें समाज में महान स्थान दिलाया।
रविदास का जीवन जाति भेदभाव के दौर में बीता, लेकिन उन्होंने शुरू से ही यह विश्वास किया कि मुक्ति का मार्ग केवल भगवान की भक्ति है, न कि किसी की जाति या सामाजिक स्थिति। समाज द्वारा बहिष्कृत किए जाने के बावजूद, उन्होंने अपने आध्यात्मिक अभ्यास पर ध्यान केंद्रित किया और गरीबों और पीड़ितों की मदद की। उनकी भक्ति इतनी प्रबल थी कि उनसे जुड़ी कई चमत्कारी कथाएँ प्रचलित हैं, जैसे पानी को अमृत में बदलना और अपने भक्तों के कष्टों को दूर करना।
एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक बार कुछ ब्राह्मण उनके निम्न जाति के होने के कारण उनके भक्त होने पर संदेह करने लगे। रविदास ने उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया और उनके शुद्ध हृदय और विनम्रता को देखकर ब्राह्मण उनके आध्यात्मिक ज्ञान से प्रभावित हुए। रविदास की शिक्षाओं का मुख्य संदेश था कि भगवान एक हैं, और सभी मनुष्यों के साथ प्रेम, विनम्रता और समानता का व्यवहार करना चाहिए।
रविदास ने अनेक भक्ति भजन लिखे, जिनमें से कई सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब में सम्मिलित हैं। उनकी शिक्षाओं ने समाज में जाति भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ी और उन्होंने एकता और समानता का संदेश दिया।
रविदास का जीवन और उनके उपदेश आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं। उनकी शिक्षा यह थी कि भगवान के प्रति भक्ति और कर्म से बड़ा कुछ नहीं होता, न कि किसी की जाति या सामाजिक स्थान।