मीरा बाई: कृष्ण की भक्त
मीरा बाई, जिन्हें केवल मीरा के नाम से भी जाना जाता है, 16वीं शताब्दी की एक हिंदू भक्त कवयित्री और भगवान कृष्ण की अनन्य भक्त थीं। राजस्थान के मेड़ता में एक राजपूत परिवार में जन्मी मीरा बचपन से ही अत्यधिक धार्मिक थीं। उनका कृष्ण के प्रति प्रेम केवल भक्ति नहीं था, बल्कि एक गहन, सर्वव्यापी प्रेम था जिसने उनके जीवन को परिभाषित किया।
प्रारंभिक जीवन और विवाह मीरा का जन्म लगभग 1498 में एक राजपूत राजघराने में हुआ था। बहुत कम उम्र से ही वह कृष्ण की एक मूर्ति से गहराई से जुड़ी हुई थीं, जिसे वह अपना शाश्वत साथी मानती थीं। बचपन में, वह कृष्ण के प्रेम में इतनी तल्लीन थीं कि अक्सर अपने राजकुमारियों के कर्तव्यों की उपेक्षा करती थीं।
मीरा का विवाह मेवाड़ के राजकुमार भोजराज से हुआ, लेकिन वह सांसारिक जीवन से अलग रहीं और अपना सारा ध्यान कृष्ण पर केंद्रित किया। उनके ससुराल वाले, विशेष रूप से उनके पति और सास, प्रारंभ में उनकी भक्ति के प्रति सहिष्णु थे। हालांकि, पत्नी और राजकुमारी के कर्तव्यों में भाग लेने से उनकी अस्वीकृति और कृष्ण के प्रति उनकी सार्वजनिक भक्ति की अभिव्यक्तियों ने जल्द ही तनाव का कारण बन दिया।
भक्ति और चुनौतियाँ मीरा की कृष्ण के प्रति भक्ति अत्यधिक और अडिग थी। वह अक्सर सार्वजनिक रूप से गाती और नृत्य करतीं, भगवान के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करतीं। उन्होंने कृष्ण को समर्पित कई भजनों की रचना की, जो आज भी गाए जाते हैं। हालांकि, उनके परिवार ने उनके इस व्यवहार को रानी और राजकुमारी के लिए अनुचित माना और इसे अच्छी नजर से नहीं देखा।
मीरा को अपनी भक्ति के कारण कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उनके जीवन पर हुए कई प्रयासों के बारे में कई कहानियाँ हैं। कहा जाता है कि उनके ससुराल वालों ने उन्हें जहर दिया था, लेकिन कृष्ण की कृपा से वह जहर अमृत में बदल गया। एक अन्य कहानी में बताया गया है कि एक बार उन्हें डसने के लिए एक नाग भेजा गया था, लेकिन वह नाग माला में बदल गया।
महल छोड़ना अंततः, मीरा ने महल छोड़ दिया और एक संत के रूप में भटकने लगीं। उन्होंने extensively यात्रा की और कृष्ण की भक्ति में गाते और नाचते हुए अपना जीवन व्यतीत किया। उन्होंने अपने जीवन का काफी समय वृंदावन, कृष्ण की भूमि, और बाद में द्वारका में बिताया, जहां माना जाता है कि उन्होंने भगवान के साथ एकाकार कर लिया।
विरासत मीरा बाई का जीवन भक्ति और प्रेम की शक्ति का प्रमाण है। उनके भजन भारतीय भक्ति संगीत का एक अभिन्न हिस्सा हैं और आज भी लाखों भक्तों को प्रेरित करते हैं। मीरा की जीवन कथा, जो भक्ति, चुनौतियों और कृष्ण के साथ अंतिम आध्यात्मिक एकता से भरी हुई है, भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता में आज भी मनाई जाती है।