जन्म: 1486 ईस्वी में नवद्वीप, बंगाल में।
अभिभावक: जगन्नाथ मिश्र और सची देवी।
प्रारंभिक जीवन:
जन्म पर नाम नीमाई रखा गया।
बचपन से ही विद्वान और भक्ति में रुचि।
युवावस्था में संसार त्यागकर संन्यास लिया।
भक्ति यात्रा:
भक्ति योग का प्रचार, खासकर संगीत और संकीर्तन के माध्यम से कृष्ण भक्ति।
भारत भ्रमण करते हुए हरिनाम संकीर्तन का प्रचार किया।
मृत्यु (समाधि): 1534 ईस्वी में जगन्नाथ पुरी में समाधि ली।
भक्ति सर्वोच्च मार्ग है
भक्ति (प्रेम और समर्पण) भगवान प्राप्ति का सर्वोत्तम तरीका।
कर्मकांड से अधिक प्रेम और भक्ति को महत्व दिया।
हरिनाम संकीर्तन
“हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे” का सामूहिक जाप।
मानते थे कि नाम जप से मन और आत्मा शुद्ध होती है।
समानता और सार्वभौमिकता
भक्ति सभी के लिए खुली है, जाति, वर्ग या लिंग से परे।
गुरु का महत्व
मार्गदर्शन के लिए एक आध्यात्मिक गुरु का अनुसरण आवश्यक।
रस भक्ति
भक्ति भावों के माध्यम से: प्रेम, मित्रता, वात्सल्य और राधा-कृष्ण प्रेम।
गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय की स्थापना
कृष्ण भक्ति पर केंद्रित भक्ति आंदोलन।
संकीर्तन का प्रचार
सामूहिक भजन और नृत्य को भक्ति का केंद्र बनाया।
संतों और कवियों को प्रेरित किया
जैसे रूप गोस्वामी, सनातन गोस्वामी, जिन्होंने उनके उपदेश साहित्य में संरक्षित किए।
दर्शन और ग्रंथ
स्वयं लिखित ग्रंथ नहीं, लेकिन अनुयायियों द्वारा लिखा गया:
चैतन्य चरितामृत (कृष्ण दास काविराज)
चैतन्य भागवत
उनके अनुयायियों के अनुसार, वे कृष्ण का अवतार राधा के भाव में माने जाते हैं।
भक्ति में संगीत, नृत्य और संकीर्तन के माध्यम से आनंद और सुलभता।
आज भी उनका आंदोलन ISKCON के माध्यम से विश्वभर में जारी है।