सक्कुबाई महाराष्ट्र की एक विनम्र और भक्त महिला थीं, जो भगवान विठोबा (विठ्ठल) के प्रति अपनी अटूट भक्ति के लिए जानी जाती हैं। सक्कुबाई एक गरीब परिवार से थीं, लेकिन भगवान के प्रति उनका प्रेम असीम था। अपने जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना करने के बावजूद, सक्कुबाई की भगवान विठोबा के प्रति भक्ति कभी नहीं डगमगाई।
सक्कुबाई का विवाह एक ऐसे परिवार में हुआ था जो उनके आध्यात्मिक झुकावों का समर्थन नहीं करता था। उनके ससुराल वाले और पति अक्सर उनके साथ कठोरता से पेश आते थे और उनकी भक्ति का मजाक उड़ाते थे। उन पर भारी घरेलू कामों का बोझ डाला जाता था, लेकिन सक्कुबाई ने कभी इन कठिनाइयों को अपनी भक्ति के बीच आने नहीं दिया। वे अपने दैनिक कार्य करते हुए भी भगवान विठोबा के भजन गाती रहती थीं और उसमें संतोष और आनंद पाती थीं।
एक बार, जब सक्कुबाई वार्षिक पंढरपुर यात्रा पर नहीं जा सकीं, तो उन्होंने भगवान विठोबा से गहरी प्रार्थना की। कथा के अनुसार, भगवान विठोबा उनकी सच्ची भक्ति से इतने प्रभावित हुए कि वे स्वयं सक्कुबाई के रूप में उनके सामने प्रकट हुए। भगवान ने उनके रूप में आकर उनके सभी घरेलू कार्य पूरे किए, जिससे सक्कुबाई पंढरपुर यात्रा में शामिल हो सकीं। गांववाले यह देखकर आश्चर्यचकित रह गए कि "सक्कुबाई" एक ही समय में दो स्थानों पर थीं: एक उनके घर के काम कर रही थीं, जबकि असली सक्कुबाई पंढरपुर में भगवान विठोबा की भक्ति में लीन थीं।
सक्कुबाई की भक्ति और सरल विश्वास ने उन्हें सभी भक्तों के बीच प्रिय बना दिया। उनकी कहानी सिखाती है कि सच्ची और सरल भक्ति में कितनी शक्ति होती है और कैसे भगवान सच्ची, दिल से की गई भक्ति का उत्तर देते हैं।
कथा की सीख:
सक्कुबाई का जीवन यह प्रमाणित करता है कि सच्ची भक्ति सभी बाधाओं को पार कर सकती है और भगवान के प्रति निष्ठावान प्रेम से चमत्कार हो सकते हैं।